#मनोरंजन / लाइफस्टाइल

Farzi Review What a lame attempt to create an Indian Breaking Bad Farzi

Spread the love

मुंबईः सॉफ्टवेयर इंजीनियर का काम होता है किसी भी प्रोग्राम या एप के लिए कोडिंग करना जोकि एक एक स्टेप में लिखी जाती है. एप या प्रोग्राम का फाइनल आउटपुट तय होता है यानी पता होता है कि इस से क्या काम होगा या क्या उम्मीद की जानी चाहिए. जब दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर सब कुछ छोड़ के फिल्म या वेब सीरीज बनाते हैं तो उम्मीद होती है कि उनकी एप्रोच कुछ इसी तरह की होगी. बहुत हद तक होती भी है लेकिन सफलता हासिल करने के बाद मामला गड़बड़ा जाता है. एक सफल सॉफ्टवेयर बनाने के बाद वो उसी तर्ज़ का एक सॉफ्टवेयर और बनाते हैं जिसमें लगभग हर बात का ध्यान रखा जाता है, लेकिन बस उसका आउटपुट तय नहीं होता. इसी वजह से सॉफ्टवेयर बनाते वक़्त एक सीधा रास्ता ढूंढा जाता है और वो है “नक़ल” का. विन्स गिलिगन नाम के निर्माता के टेलीविज़न इतिहास के सबसे चर्चित टीवी शो “ब्रेकिंग बैड” (Breaking Bad) को आधार बना कर जब नक़ल की जाती है तो बनती है सुप्रसिद्ध निर्देशक द्वय राज और डीके की नयी वेब सीरीज – फर्ज़ी (Farzi). अमेजन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) पर हाल में रिलीज़ फ़र्ज़ी में शाहिद कपूर, विजय सेतुपति, केके मेनन, अमोल पालेकर, और राशि खन्ना जैसे कलाकार मौजूद हैं. दर्शकों को नया कुछ नहीं मिला है लेकिन पैकेजिंग नयी मिली है. सीरीज है मज़ेदार, देखने जैसी है लेकिन नाम की ही तरह फ़र्ज़ी है.

ब्रेकिंग बैड में केमिस्ट्री पढ़ाने वाले एक स्कूल टीचर को कैंसर हो जाता है. टीचर कहीं के भी हों, गरीब हो होते हैं. अपने परिवार के लिए कुछ न छोड़ कर जाने का ख्याल उसे कचोटता रहता है. अपने एक पुराने खुराफाती स्टूडेंट की मदद से वो अपने केमिस्ट्री के ज्ञान का इस्तेमाल एक बेहतरीन ड्रग बनाने के लिए करता है. जिस ड्रग डीलर को वो अपनी बनायीं ड्रग्स बेचते हैं उसके पीछे पुलिस पड़ जाती है तो वो इन दोनों को किडनैप कर लेता है. और फिर ये कहानी करीब 5 सीजन तक चलती है… जिसमें कई कलाकार आते जाते रहते हैं.

अब फ़र्ज़ी की कहानी देखिये. शाहिद कपूर एक बेहतरीन स्केच आर्टिस्ट और पेंटर है. उसके नानाजी की प्रिंटिंग प्रेस है जहाँ से वो क्रांति नाम का अख़बार निकालते हैं. इस अख़बार और प्रिंटिंग प्रेस पर चढ़े भरी भरकम कर्ज़े को उतारने के लिए और अपने नाना को बचाने के लिए शाहिद अपने जिगरी दोस्त फिरोज के साथ मिल कर अपनी प्रिंटिंग प्रेस में नकली नोट छापते हैं. नोट की डिज़ाइन और प्रिंटिंग शानदार होती है तो वो खूब चलता है. एक दिन उन्हें एक बड़ा गैंगस्टर मिलता है जो उन्हें बहुत बड़ा आर्डर देता है. उस गैंगस्टर के पीछे पुलिस पड़ी होती है तो वो भी इन दोनों को ख़त्म करने का प्लान बना लेता है. लेकिन वो अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाता. फिर कहानी ऐसे मोड़ पर ख़त्म होती है जहाँ दूसरे सीजन की गुंजाईश होती है.

फ़र्ज़ी में कई ऐसे सीन या रिफरेन्स मौजूद हैं जो इसे ब्रेकिंग बैड का भारतीय वर्शन बनाते हैं. जब शाहिद कपूर कहता है कि वो जो भी कर रहा है वो उसे अंदर से गलत नहीं लग रहा तो हमें ब्रेकिंग बैड के ब्रायन क्रैंस्टन की याद आ ही जाती है. शाहिद और फिरोज (कमाल के अभिनेता भुवन अरोरा) जब नोटों के पहाड़ पर बैठते हैं या जब वो नोट छाप रहे होते हैं और अचानक पुलिस आ जाती है तो शाहिद अपने हाथ में बड़ा पाना ले कर उसे मारने की सोचने लगता है और फिर बड़े अफसर का फ़ोन आने से पुलिस को जाना पड़ता है, बिना छापा मारे तो एक दम ब्रेकिंग बैड नज़र आता है. शाहिद का ट्रांसफॉर्मेशन, एक आर्टिस्ट से लेकर गलत तरीकों से कमाई हुई दौलत उड़ाने वाला, पूरी तरह ब्रेकिंग बैड है. पुलिस से बचने के लिए रास्ते में नोट उड़ाने का तरीका हो या पुलिस चीफ के कमरे में ट्रांसमीटर छुपाने तक (फ़र्ज़ी में राशि खन्ना के फ़ोन में टैपिंग सॉफ्टवेयर इनस्टॉल कर के)…ऐसी कई बातें हैं जो कि फ़र्ज़ी को ब्रेकिंग बैड का भारतीय वर्शन बनाती हैं.

फ़र्ज़ी में कई ऐसे सीन या रिफरेन्स मौजूद हैं जो इसे ब्रेकिंग बैड का भारतीय वर्शन बनाते हैं. जब शाहिद कपूर कहता है कि वो जो भी कर रहा है वो उसे अंदर से गलत नहीं लग रहा तो हमें ब्रेकिंग बैड के ब्रायन क्रैंस्टन की याद आ ही जाती है. शाहिद और फिरोज (कमाल के अभिनेता भुवन अरोरा) जब नोटों के पहाड़ पर बैठते हैं या जब वो नोट छाप रहे होते हैं और अचानक पुलिस आ जाती है तो शाहिद अपने हाथ में बड़ा पाना ले कर उसे मारने की सोचने लगता है और फिर बड़े अफसर का फ़ोन आने से पुलिस को जाना पड़ता है, बिना छापा मारे तो एक दम ब्रेकिंग बैड नज़र आता है. शाहिद का ट्रांसफॉर्मेशन, एक आर्टिस्ट से लेकर गलत तरीकों से कमाई हुई दौलत उड़ाने वाला, पूरी तरह ब्रेकिंग बैड है. पुलिस से बचने के लिए रास्ते में नोट उड़ाने का तरीका हो या पुलिस चीफ के कमरे में ट्रांसमीटर छुपाने तक (फ़र्ज़ी में राशि खन्ना के फ़ोन में टैपिंग सॉफ्टवेयर इनस्टॉल कर के)…ऐसी कई बातें हैं जो कि फ़र्ज़ी को ब्रेकिंग बैड का भारतीय वर्शन बनाती हैं.

कुछ ऐसी गलतियां हैं जो शायद प्रिंटिंग का काम जानने समझने वाले लोगों को हज़म नहीं होगी. ऑफसेट प्रिंटिंग में पहले आर्टवर्क बनता है, फिर उसका हाय रेज़ोल्यूशन स्कैन होता है, नेगेटिव फिल्म पर उसका आउटपुट लिया जाता है और फिर उसे प्रिंटिंग प्लेट पर एक्सपोज़ किया जाता है. प्रिंटिंग प्लेट को प्रिंटिंग मशीन पर माउंट कर के, पेपर और इंक भर के प्रिंटिंग शुरू की जाती है. शुरू की कुछ कॉपी तो टेस्ट रन में निकाल दी जाती है ताकि कलर का फ्लो सही मैनेज किया जा सके. प्रिंटिंग होने के बाद भी प्लेट मशीन पर ही लगी रहती हैं क्योंकि प्रिंटर्स, छापे हुए कागज़ की कटिंग में लग जाते हैं. ये बात बताना इसलिए ज़रूरी है कि पूरी प्रोसेस में काफी समय लगता है और प्रिंटिंग की प्रोसेस होते समय कोई प्रेस के अंदर आ जाये तो मशीन को छू कर, मशीन पर चढ़ी प्लेट को और आस पास बिखरे टेस्ट रन के पेपर देख के समझ सकता है कि क्या चल रहा है, क्या छप रहा है. फ़र्ज़ी में इतने बड़े फैक्ट को दरकिनार कर दिया गया है.

इस सीरीज में ख़ास क्या है? शाहिद और विजय सेतुपति की पहली वेब सीरीज है तो उमीदें तो हैं ही. शाहिद से इतने काम की उम्मीद तो की ही जाती है जबकि वो इस से ज़्यादा काबिल हैं. संभव है आगे आने वाले सीजन उनकी प्रतिभा के साथ न्याय करेंगे. विजय सेतुपति एक कद्दावर अभिनेता हैं. काला, लगभग असुंदर, बेडौल और भारी भरकम शरीर, हिंदी ठीक से न बोल पाने वाला लेकिन आँखों से बहुत कुछ कह जाने वाला. विजय के लिए अभिनय रोज़मर्रा का काम लगता है क्योंकि वो इतने सहज हैं. बिना थिएट्रिक्स के, बिना सामने वाले अभिनेता को कमज़ोर दिखाते हुए, ज़रुरत पड़ने पर अपने आप को लगभग अदृश्य बना लेते हुए भी विजय अपने सीन में भारी लगते हैं. सामान्य तौर पर इस तरह का किरदार पूरी सीरीज में छाया रहता है लेकिन विजय इस बार सिर्फ अपने सीन में दमदार लगे हैं. उनकी तुलना में राज और डीके के “द फॅमिली मैन” के चेल्लम सर का जलवा ज़्यादा देर तक रहता है. स्पाय यूनिवर्स बनाने की कल्पना से फ़र्ज़ी में विजय को द फॅमिली मैन के मनोज बाजपेयी (श्रीकांत तिवारी), उदय महेश (चेल्लम सर) और एनआईए के ऑफिस के नीचे खड़े अफसरों से बात करते हुए दिखाया गया है. क्रॉस ओवर एक नयी स्टाइल ऑफ़ फिल्म मेकिंग चल पड़ी है. अभी तक ओवरडोज़ नहीं हुआ है तो चल रहा है.

राशि खन्ना सुन्दर हैं. प्रतिभाशाली हैं. अजय देवगन के साथ उन्हें रुद्रा नाम की वेब सीरीज में प्रमुख भूमिका में देखा गया है. रेजिना कसेंड्रा की एक फ्लॉप और बोरिंग वेब सीरीज “जांबाज़ हिंदुस्तान के” हाल ही में रिलीज़ हुई है. इस सीरीज में उनका काम लगभग नहीं के बराबर है. ब्लैक फ्राइडे, सरकार, हैदर और सात उचक्के में से थोड़ा थोड़ा अंश निकाल कर उसमें आगे से राइट वाला किरदार मिला कर केके मेनन का किरदार लिखा गया है. ज़ाकिर हुसैन को देख कर हंसी आती ही आती है लेकिन बेबी फिल्म में मुरली शर्मा का किरदार अगर याद हो तो ये कुछ उसी मिज़ाज का किरदार लगता है. जिस अभिनेता ने प्रभावित किया है वो है भुवन अरोरा। वो शाहिद कपूर के किरदार का दोस्त भी है, फिलोसोफर भी है, कुछ हद तक गाइड भी है यानि मुन्ना भाई का सर्किट है. आखिरी सीन में जब थक हार कर वो ट्रैन में चढ़ जाता है तो उसकी आँखों में ही सब कुछ बयान हो जाता है. इस अभिनेता को बड़े रोल्स मिलना चाहिए.

वेब सीरीज में सनी और फिरोज की दोस्ती, मंत्री गेहलोत और माइकल वेदनायगम की आपसी नोंक झोंक, सनी और उसके नानू माधव का रिश्ता, सनी और यासिर चाचा के बीच की बनती बिगड़ती इक्वेशन, सनी और मेघा के बीच का रोमांस, माइकल और रेखा के बीच का तलाक ऐसे दो दो किरदारों के आपसी रिश्तों के ज़रिये बहुत ही बातों को दिखाया गया है. वैसे इस सीरीज में हुसैन दलाल के डायलॉग्स ने समां बाँध रखा है. बस गालियों की भरमार है क्योंकि वेब सीरीज है. कई अवार्ड शोज और चैट शोज के स्क्रिप्ट राइटर हुसैन ने इस बार काफी ज़ोरदार डायलॉग लिखे हैं. कई मीनिंगफुल डायलॉग स्क्रिप्ट में छितरे पड़े हैं, जिसमें फिलॉसोफी भी है और तंज़ भी.

मुंबई के ट्रैफिक में पुलिस द्वारा चेस किये जाने का एक मज़ेदार सीक्वेंस अगर छोड़ दिया जाए तो पंकज कुमार की सिनेमेटोग्राफी में ऐसी कोई बात नहीं है जो इस सीरीज को कोई नया रंग प्रस्तुत करती हो. हाँ, एडिटर सुमीत कोटियन का काम अच्छा है. सीन की सेटिंग और मिज़ाज जैसा है उसकी एडिटिंग भी उसी अंदाज़ में की गयी है इसलिए प्रभाव ज़्यादा पड़ता है. बाकी सीरीज में बातें करने और देखने के लिए बहुत कुछ है. सीरीज अच्छी है. मनोरंजक है. गालियां बहुतायत से हैं. बस किसी भी किरदार से इमोशनल जुड़ाव नहीं हो पाया है और ब्रेकिंग बैड का प्रभाव हावी है. गाली गलौज से परहेज़ न हो तो मनोरंजन की दृष्टि से इसे आज ही देख लीजिये.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

केतन सोढा, सचिन जिगर/5

Tags: Shahid kapoor, Vijay Sethupathi, Web Series

Farzi Review What a lame attempt to create an Indian Breaking Bad Farzi

Farzi Review What a lame attempt to

Farzi Review What a lame attempt to create an Indian Breaking Bad Farzi

If you are missing a masala mass

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!