भोपाल
लोकसभा चुनावो से पहले भोपाल में कोर्ट ने विवादित सरस्वती मन्दिर या मस्जिद मामले में ASI को सर्वे के निर्देश दिए है , इंदौर के धार जिले में यहां मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाये जाने का मामला न्यायालय में चल रहा है ।
ज्ञानवापी परिसर के विवाद के बाद अब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने धार स्थित ‘भोजशाला’ को लेकर अहम फैसला सुनाया है. एक लंबे समय से चले आ रहे विवाद के बाद कोर्ट ने भोजशाला परिसर के ASI सर्वे का आदेश दे दिया है.
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने सोमवार को आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को भोजशाला मंदिर के परिसर का वैज्ञानकि सर्वे करने का आदेश दिया है. यह मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित एक विवादित स्मारक है जिसे मुस्लिम पक्ष कमाल मौलाना मस्जिद कहता है.
हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पहले वागदेवी (देवी सरस्वती) का मंदिर हुआ करता था, जिसे तोड़कर मस्जिद बना दिया गया.
भोजशाला मंदिर को लेकर पहले भी मामला ASI पहुंचा है. आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इसे लकरे अप्रैल 2003 में एक आदेश भी जारी किया था. इसके अनुसार, हिंदुओं को हर मंगलवार को भोजशाला परिसर के अंदर पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को हर शुक्रवार को यहां नमाज अदा करने की अनुमति है. परिसर के हक को लेकर धार्मिक संगठनों में मतभेद होता रहता है. हिंदू संगठन चाहते हैं कि इस साइट का नाम बदलकर सरस्वती सदन हो जाए. इस पूरे विवाद समझने के लिए भोजशाला का इतिहास जानना भी जरूरी है.
धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, भोजशाला मंदिर को राजा भोज ने बनवाया था. राजा भोज परमार वंश के सबसे महान राजा थे, जिन्होंने 1000 से 1055 ईस्वी तक राज किया. इस दौरान उन्होंने 1034 इस्वी में एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला नाम से जाना गया. दूर-दूर से छात्र यहां पढ़ने आया करते थे. इसी काॅलेज में देवी सरस्वती का मंदिर भी था. हिंदू धर्म में सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है. कहा जाता है कि मंदिर बहुत भव्य था. सरस्वती मदिर का उल्लेख शाही कवि मदन ने अपने नाटक में भी किया था. जिसे नाटक कोकरपुरमंजरी कहा जाता है ,
विवाद बताया जा रहा है कि
14वीं सदी में मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया. बताया यह जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला कर दिया था, जिसके बाद से इस जगह की शक्ल बदलती गई. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1401 ईस्वी में दिलवार खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में और 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवा दी. 19वीं शताब्दी में एक बार फिर इस जगह बड़ी घटना हुई. दरअसल, उस समय खुदाई के दौरान सरस्वती देवी के प्रतिमा मिली थी. उस प्रतिमा को अंग्रेज अपने साथ ले गए और फिलहाल वो लंदन संग्रहालय में है. प्रतीमा को भारत वापस लाए जाने की मांग भी की जाती रही है.
आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भोपाल सर्किल की रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्जिद के निर्माण में मूल सरस्वती मंदिर की संरचना के प्रमाण मिलते हैं. धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट पर कहा गया है कि विवादित स्थल में ऐसी टाइल मिली हैं जिनमें संस्कृत और प्राकृत भाषा की साहित्यिक रचनाएं गढ़ी हुई हैं. इन शिलालेख में जो अक्षर दिखाई देते हैं वो 11वीं-12वीं शताब्दी ईस्वी समय के हैं. परिसर में ऐसी बातें भी लिखी मिली हैं जो हिंदू संगठन के दावे को मजबूत करते हैं. यहां पाई गई एक रचना में परमार राजाओं उदयादित्य और नरवर्मन की प्रशंसा की गई है जो राजा भोज के तुरंत बाद उत्तराधिकारी बने थे . दूसरी रचना में कहा गया है कि उदयादित्य ने स्तंभ पर शिलालेख को गढ़वाया था.
अब इस मामले को लेकर न्यायलय में चल रहे वाद में कोर्ट ने भोजशाला परिसर के ASI सर्वे का आदेश दे दिया है….जिसे लेकर दोनों पक्षो में अलग अलग प्रतिक्रिया सामने आ रही है ।