कँगना रनौत के साथ हुई हाथापाई को लोग दो नज़रिया दे रहे है .. एक जो वास्तव के हिंसा को गलत मानते है जो कि शिक्षित परिवेश से आते है ,और दुसरे जो राजनीतिक यूनिवर्सिटीओ में वाट्सएप तथा सोशल मीडिया से phd के छात्र है जिनके हिसाब से ये एक विरोध दर्ज कराने का तरीका था ..हिंसा विरोध दर्ज करने का जरिया कब से हो गया?? और अगर ये ही अगर न्याय हुआ तो 84 से लेकर अबतक जाने कितनी हत्यायें और हिंसा जायज मानी जाने लगेगी… जो कि सरासर गलत हैं.. जिनके हाथों में सुरक्षा की व्यवस्था है वो इस तरीके से विरोध दर्ज करायेंगे?? ऐसे में आपके किसी प्रिय नेता, किसी महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के साथ उनका ही सुरक्षाकर्मी कोई अप्रिय घटना कर दे तो?? जितनी ये घटना गलत है उससे ज्यादा उसका राजनीतिकरण ,उसका बचाव गलत है… जब नौकरी से राजनीति में जाने का मन करे और सस्ती सोहरत लेने की इच्छा जागृत हो तो इस प्रकार की घटनायें होती हैं. हिंसा एक सामाजिक बुराई है चाहे वो प्रतिशोध में ही क्यूँ ना हो ।।
:निखिल मिश्रा