2020 में हुए किसान आंदोलन के बाद भले ही मोदी सरकार बैंक फुट पर आ गई हो , भले ही तीनों किसान बिल को वापिस ले लिया हो , भले ही किसानों सहित कांग्रेस और सहयोगी राजनैतिक पार्टियों ने इसे मोदी सरकार की हार बताया हो लेकिन मोदी सरकार उसके बाद भी लगातार आगे बढ़ती रही और तीसरी बार फिर केंद्र की सत्ता पर कब्जा बनाए रखा , वही हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत ने भाजपा को देश की सबसे मजबूत पार्टी घोषित कर दिया , लेकिन एक बार फिर किसान आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो गई है ,किसान यूनियन से जुड़े नेता राकेश टिकैत कह चुके है इसबार 2020 से भी बड़ा आंदोलन होगा , क्या किसानों की वाकई जायज मांगे है जिसकी वजह से यह बार बार आंदोलन हो रहे है या सिर्फ किसानों को मोहरा बनाकर सिर्फ मोदी सरकार की घेराबंदी ही इनका उद्देश्य है आज चर्चा इस पर..
पंजाब और हरियाणा के बॉर्डर पर किसान दिल्ली कूच को लेकर अड़े हुए हैं..माना जा रहा है अगर पंजाब के किसानों की दिल्ली में एंट्री होगी तो हरियाणा के किसान भी इसमें शामिल हो जाएंगे।
दिल्ली एंट्री नहीं मिलने के बाद सरकार के खिलाफ किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल अब आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। बीते 18 दिनों से वह भूख हड़ताल पर हैं, खनौरी बॉर्डर पर डल्लेवाल से मुलाकात करने भारतीय किसान युनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत व किसान नेता लाखोवाल पहुंचे। इस दौरान टिकैत ने डल्लेवाल से मुलाकात के बाद किसान आंदोलन को मजबूत और रणनीति बदलने की बात कही। इसके साथ ही उन्होंने अलग-अलग किसान संगठनों को एकत्रित कर 2020 की तरह एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने की बात कही है।
किसानों के एक समूह ने 6 दिसंबर और आठ दिसंबर को पैदल दिल्ली में प्रवेश करने का प्रयास किया। हरियाणा में सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी ,
आपको बता दे पंजाब के किसान फरवरी से अपनी मांगों को लेकर शंभू बाॅर्डर पर बैठे हैं। किसान दो बार दिल्ली कूच का प्रयास कर चुके हैं, लेकिन दोनों बार हरियाणा पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया था। शनिवार को फिर किसान दिल्ली की तरफ घुसने का प्रयास किया , किसानों ने कुंडी डालकर बैरिकेड्स तोड़ने की कोशिश की। पुलिस ने आंसू गैस और पानी का प्रयोग किया। दो किसान घायल हुए हैं। एम्बुलेंस से भेजा गया है।
इस आंदोलन में अधिकतर किसान संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले एकजुट हुए हैं. ये 10 अलग-अलग किसानों के संगठन है. जिनमें भारतीय किसान यूनियन टिकैत, भारतीय किसान यूनियन महात्मा टिकैत, भारतीय किसान यूनियन अजगर, भारतीय किसान यूनियन कृषक शक्ति, भारतीय किसान परिषद, अखिल भारतीय किसान सभा, किसान एकता परिषद, किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा, जय जवान-जय किसान मोर्चा और सिस्टम सुधार संगठन आगरा जैसे बड़े और अहम संगठन इसमें शामिल हैं.
एक बार नजर डालते है आखिर किसानों की मांगे क्या है
मुख्य तौर पर कहा जाए तो वे भूमि अधिग्रहण के सवाल पर उचित मुआवजा, फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी और किसानों के बकाया समस्याओं का समाधान करने को लेकर मुखर हैं.
वही किसानों का आरोप है कि गौतमबुद्ध नगर के किसानों को गोरखपुर हाईवे परियोजना की तरह 4 गुना मुआवजा नहीं दिया गया. साथ ही, 2014 के बाद से अब तक सर्किल रेट में भी कोई बढ़ोतरी नहीं हुई.
किसान नए भूमि अधिग्रहण कानून के लाभ और हाई पावर कमेटी की सिफारिश लागू करने को लेकर भी आमादा हैं. जिसमें आबादी क्षेत्र में 10 फीसदी प्लॉट, बाजार दर का 4 गुना मुआवजा, भूमिहीन किसानों के बच्चों को रोजगार और पुनर्वास की मांग अहम है.
इसके अलावा वे पुरानी मगर बड़ी मांगों में से एक – कर्ज माफी, पेंशन, बिजली दरों में बढ़ोतरी न करने और पिछले प्रदर्शनों में दर्ज हुए पुलिस मामलों की वापसी को लेकर लामबंद हैं. साथ ही, लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय और 2020-21 के आंदोलन में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा मिले, इस सवाल पर भी वे इकठ्ठे हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति पर अगर गौर करें तो पाते हैं कि वे इस बार आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं. उनकी शिकायत है कि उनकी मांगों को लेकर सरकार ने 18 फरवरी के बाद ही से कोई बातचीत नहीं की है. जबकि पहले ये कहा गया था कि सरकार किसानों से व्यवस्थित बातचीत कर एक ठोस समाधान ढूंढेगी…
फिलहाल इस बार भी किसान संगठन मजबूती के साथ अड़े हुए है फिर एक बार केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन के नाम पर अभी विरोधी दल भी इस मुद्दे को शांत नहीं होने देना चाहते ..