अलवर (राजस्थान)
सुप्रीम कोर्ट से भाजपा को झटक ,इलेक्टोरल बांड को बताया असंवैधानिक…
लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है , सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह है स्कीम असवैधानिक होने के साथ हो बॉन्ड की गोपनीय बनाए रखना भी असंवैधानिक है , यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है । अब 13 मार्च को पता लगेगा कि किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया क्योंकि कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से 13 मार्च तक अपनी ऑफिशल वेबसाइट पर इलेक्टोरलल बंद स्कीम की जानकारी पब्लिश करने के लिए कहा है इस दिन पता चलेगा कि किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया यह फैसला पांच जजों ने सर्वसम्मति से सुनाया ।
मिली जानकारी के अनुसार 2018 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये सबसे ज्यादा चंदा मिला , छह साल में भाजपा को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये 6337 करोड़ का चंदा मिला है , वही कोंग्रेस को 1108 करोड़ का चंदा मिला ।
क्या है चुनावी बॉन्ड ?
इस योजना को सरकार ने 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था , इसके मुताबिक चुनावी बांड को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई की ओर से खरीदा जा सकता है , कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है , जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29 के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बांड के पात्र हैं , शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में काम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हो , चुनावी बॉन्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा ।
याचिका कर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम शामिल है , केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ,सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए , सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओ की तरफ से पैरवी की , इस दौरान पांच जजों की पीठ ने सर्व सम्मति से इस पर फैसला सुनाया , चीफ जस्टिस ने कहा पॉलीटिकल प्रोसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं , वोटर को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है , जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है ।
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए कहा यह स्कीम असंवैधानिक है ,बॉन्ड की गोपनेता बनाए रखना असवैधानिक है , यह स्कीम सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन है ।