हर चीज में इतिहास होता है लेकिन हर चीज इतिहास नहीं होती. इतिहास को पठनीय बनाने के लिए हमें उसे आमजन की भाषा में ही बताना होगा. अतीत और वर्तमान को समझने और भविष्य को देखने की नई खिड़की खोलने वाले कई सारे प्रश्न हमारे सामने हैं, उत्तर हमें और हमारी नई पीढ़ी को ढूंढने हैं. हिंदी साहित्य के इतिहास में अपनी जगह बनाने के लिए आदिवासी कविता ने सबसे लंबी लड़ाई लड़ी है. आदिवासी समाज के गीतों में आसपास की पारिस्थितिकी में जो कुछ भी घट रहा है वह सब शामिल होता है. उनके गीतों में जीवन का राग है. उनके गीतों में प्रेम है तो विद्रोह भी है. यह बातें राजकमल प्रकाशन के 77वें स्थापना दिवस पर आयोजित विचार पर्व ‘भविष्य के स्वर’ के वक्ताओं ने कहीं.
राजकमल प्रकाशन दिवस पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सहयात्रा उत्सव मनाया गया. इस मौके पर विचार पर्व ‘भविष्य के स्वर’ का चौथा अध्याय प्रस्तुत किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने वाले चार वक्ताओं ने निर्धारित विषयों पर भविष्य की दिशा तय करने वाले वक्तव्य दिए. इतिहास अध्येता ईशान शर्मा, कहानीकार कैफी हाशमी, कवि विहाग वैभव और आदिवासी लोक साहित्य अध्येता-कवि पार्वती तिर्की ने राजकमल प्रकाशन के स्थापना दिवस पर अपने विचार व्यक्त किए.
व्हाट्सएप पर जो मिल जाता है, वह इतिहास नहीं- ईशान शर्मा
विचार पर्व के पहले वक्ता इतिहास अध्येता ईशान शर्मा ने कहा कि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां बहुमत द्वारा स्वीकार किए गए तथ्यों को ही इतिहास मान लिया जाता है. बहुत-सी ऐसी कहानियां हैं जो हमें कहीं भी लिखित रूप में नहीं मिलतीं लेकिन लंबे समय तक सुनते रहने से वह इतिहास का दर्जा पा चुकी हैं. हम सबका इतिहास पर अधिकार है क्योंकि इतिहास हमारी खुद की कहानी है.
सही इतिहास क्या है और उसे हमें कैसे पढ़ना चाहिए इस पर बात करते हुए ईशान ने कहा कि इतिहास को लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्हीं की भाषा में उसका उपलब्ध होना जरूरी है. हमें अंग्रेजी में तो आसानी से उचित साहित्य मिल जाता है लेकिन आज भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में इतिहास की किताबों की कमी है. शायद यही कारण है कि इतिहास को हमेशा उबाऊ समझा गया क्योंकि हमें यह पढ़ाया ही गलत तरीके से गया है. हमें इतिहास को पढ़ने का तरीका बदलना होगा. उन्होंने कहा कि यह समझना बहुत जरूरी है कि हमें व्हॉट्सएप पर जो मिल जाता है वह इतिहास नहीं है. सही इतिहास जानने के लिए पढ़ना पड़ेगा.
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रचनाओं में पाठक को चुनौती नहीं देते लेखक- कैफी हाशमी
कैफी हाशमी ने कहा कि जब प्रेमचंद लिखा करते थे तब भी समस्याएं छोटी तो नहीं थीं. समस्याएं हर दौर की बड़ी ही होती हैं लेकिन उस समय समस्याओं के सापेक्ष समाज सरल था. यह सरलता इक्कीसवीं सदी के शुरुआती सालों तक बनी रही. अब हम डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के दौर में हैं जहां आर्टिफिशिअल इंटेलिजेंस और ओवरफ्लो ऑफ इनफार्मेशन जैसी चीजें हमारे सामने हैं. ऐसे में यह लेखकों के ऊपर है कि वह समय की इन महीन परतों के बीच कथा के लिए कैसे विषय चुन सकते हैं.
कैफी हाशमी का वक्तव्य ‘कथा में विषय का चुनाव’ विषय पर केन्द्रित था. उन्होंने कहा कि कई बार लेखक को यह लगता है कि कहानी के लिए विषय का चुनाव वह खुद करता है लेकिन ऐसा नहीं होता. लेखक कहानी के लिए जब किसी विषय का चुनाव करता है तो उसके पीछे अवचेतन में बहुत से दबाव काम कर रहे होते हैं.
दलित विमर्श समकालीन साहित्य की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि- विहाग वैभव
कवि विहाग वैभव ने ‘इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता’ विषय पर अपना वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता मूलत: बहुवचन संज्ञा है. हिंदी साहित्य के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि कविता में इतनी भिन्न-भिन्न सामाजिक समूह की अभिव्यक्तियों प्रकाशित हुईं. दलित आंदोलन, स्त्री आंदोलन और आदिवासी विमर्श ने समकालीन कविता ही नहीं बल्कि समूचे हिंदी साहित्य को बदलकर रख दिया है. उन्होंने कहा कि दलित विमर्श समकालीन साहित्य की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. हिंदी साहित्य में अपनी जगह बनाने के लिए सबसे लंबा सफर आदिवासी कविता ने तय किया है और इसी ने सबसे लंबी लड़ाई लड़ी है.
विहाग वैभव ने कहा कि सोशल मीडिया के आने से सबको अपने आप को अभिव्यक्त करने का एक लोकतांत्रिक मंच मिला है लेकिन यह हिंदी कविता को जो कुछ दे सकता था, वह दे चुका है. वर्तमान में कवियों की सोशल मीडिया के जरिए जल्दी लोकप्रिय होने की मंशा हिन्दी कविता के लिए हानिकारक होगी.
आदिवासी समाज के लिए चलना ही नृत्य है और बोलना ही गीत- पार्वती तिर्की
‘भविष्य के स्वर’ कार्यक्रम में पार्वती तिर्की ने कि आदिवासी समाज के गीतों में आसपास की पारिस्थितिकी में जो कुछ भी घट रहा है वह सब शामिल होता है. उनके गीतों में जीवन का राग है. उनके गीतों में प्रेम है तो विद्रोह भी है. आदिवासी समाज के लिए हर मौसम उत्सव की तरह होता है और जीवन की हर गतिविधि के लिए उनके पास अपने गीत है. यह इतने सहज है कि उनके लिए चलना ही नृत्य है और बोलना ही गीत है.
पार्वती तिर्की ने कहा कि आदिवासी गीतों की व्यवस्था और शैली दो सबसे अहम चीजें हैं. आज को समझने के लिए कल के गाए गीतों का पुनर्पाठ इसीलिए जरूरी हो जाता है. वाचिक से लिखित की परम्परा तक के संघर्ष से यह भी मालूम कर सकते हैं कि आधुनिक मनुष्य द्वारा बनायी व्यवस्था आदिवासी वाचिक साहित्य व्यवस्था से कैसे भिन्न है, वह अपनी भिन्नता में कौन सा अर्थ लेती है, वह सकारात्मक है या नकारात्मक?
उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था में जंगल और आदिवासी के लिए बहुत खतरे हैं. वर्तमान में लोकगीतों की लोकप्रियता कम हो रही है. गीतों को न गाया इस सदी का सच है जो कि इस व्यवस्था की उपज है. उनके गीतों को दोहराया जाना ही व्यवस्था से सवाल करना है. इसलिए इन गीतों के पुनर्पाठ की बहुत जरूरत है.
युवा प्रतिभाओं को सामने लाने का प्रयास है ‘भविष्य के स्वर’- अशोक माहेश्वरी
कार्यक्रम के आरंभ में राजकमल प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा कि भविष्य के स्वर युवा प्रतिभाओं को सामने लाने का हमारा एक विनम्र प्रयास है. उन्होंने कहा कि अब तक इसमें चुने गए युवा 40 वर्ष तक की आयु के रहे हैं. यह पहली बार हुआ है कि हमने अधिकतम आयु सीमा 30 वर्ष रखी है.
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FIRST PUBLISHED : February 29, 2024, 18:40 IST