नई दिल्ली: ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर व्यास जी तहखाना केस में एक और बड़ा अपडेट सामने आया है. ज्ञानवापी व्यास जी तहखाना मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इस मामले को लेकर मुस्लिम पक्ष से पहले ही हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है और उसने अदालत में एक कैविएट याचिका दाखिल की है. दरअसल, हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में कैविएट अर्जी दायर की है. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में व्यास जी के तहखाने में पूजा रोकने की कार्रवाई को अवैध बताया था और मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी अर्जी में हिंदू पक्ष ने कहा है कि अगर इस मामले में मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट आता है तो ऐसी स्थिति में उसका भी पक्ष सुना जाए. यहां बताना जरूरी है कि सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की वह याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उसने जिला अदालत के व्यासजी तहखाने में पूजा के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर व्यास जी के तहखाने में पूजा-अर्चना रोकने की तत्कालीन प्रदेश सरकार की कार्रवाई को अवैध करार देते हुए अंजुमन इंतेजामिया की अपील सोमवार को खारिज कर दी थी.
अदालत ने जिला न्यायाधीश के फैसले को माना सही
अदालत ने व्यास जी के तहखाने का वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को ‘रिसीवर’ (प्रभारी) नियुक्त करने और तहखाने में पूजा की अनुमति देने के वाराणसी के जिला न्यायाधीश के निर्णय को सही ठहराया था. न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की अदालत ने कहा था कि 1993 में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा अनुष्ठान बिना किसी लिखित आदेश के तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा रोकने की कार्रवाई अवैध थी. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद 15 फरवरी को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था. सोमवार को जारी आदेश में अदालत ने कहा कि व्यास जी के तहखाने में पूजा-अर्चना जारी रहेगी.
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने दायर की थी अर्जी
बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी जिला जज के दोनों निर्णयों (वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को तहखाने का रिसीवर नियुक्त करने और तहखाने में पूजा की अनुमति देने) के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी. दोनों ही अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा, ‘इस मामले के संपूर्ण रिकॉर्ड्स को देखने और संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत को वाराणसी के जिला जज द्वारा पारित निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला.’ अदालत ने कहा कि इन दो आदेशों (वाराणसी की अदालत के) के खिलाफ दायर अपील में मस्जिद कमेटी अपने मामले को सिद्ध करने और जिला अदालत के आदेश में किसी प्रकार की अवैधता दर्शाने में विफल रही है इसलिए इस अदालत द्वारा किसी तरह का हस्तक्षेप वांछित नहीं है. न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि उस स्थान पर पूजा पहले ही प्रारंभ हो चुकी है और जारी है इसलिए उसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है.
सुप्री कोर्ट पहले कर चुका था इनकार
उल्लेखनीय है कि व्यास जी के तहखाना में पूजा की अनुमति के खिलाफ मस्जिद कमेटी की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार करने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई थी. मस्जिद कमेटी की दलील थी कि व्यास जी का तहखाना, उस मस्जिद परिसर का हिस्सा होने के नाते उनके कब्जे में था और व्यास परिवार या किसी अन्य को तहखाने के भीतर पूजा करने का अधिकार नहीं है. वहीं, हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक 1993 तक व्यास परिवार ने तहखाने में धार्मिक अनुष्ठान किया. हालांकि, राज्य सरकार के निर्देश के अनुपालन में धार्मिक अनुष्ठान रोक दिया गया.
कैसे प्रशस्त हुआ था पूजा का मार्ग
वाराणसी के जिला न्यायाधीश ने 31 जनवरी 2024 को ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने के भीतर पूजा करने और जिला मजिस्ट्रेट को तहखाने का ‘रिसीवर’ नियुक्त करने की मांग वाली शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास की अर्जी स्वीकार करते हुए वहां पूजा अर्चना का मार्ग प्रशस्त कर दिया. वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को 17 जनवरी 2024 को पारित आदेश के अनुपालन में तहखाने का ‘रिसीवर’ नियुक्त किया गया जिसके बाद वाराणसी जिला प्रशासन ने 24 जनवरी 2024 को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर दक्षिणी तहखाने का कब्जा अपने हाथ में ले लिया. न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने संबंधित पक्षों को सुनने के बाद 15 फरवरी, 2024 को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था.
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FIRST PUBLISHED : February 28, 2024, 08:45 IST