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एक राज्‍य नहीं, एक पार्टी नहीं… लोकसभा चुनाव से पहले क्‍यों मची है भगदड़? कहीं व‍िपक्ष के साथ न हो जाए ‘खेला’

हाइलाइट्स

लोकसभा चुनाव इसी साल अप्रैल-मई में होने हैं.
पीएम मोदी तीसरी बार जीत के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं.

नई दिल्‍ली. लोकसभा चुनाव की आहट ने तमाम राजनीतिक दलों में भगदड़ की स्थिति बना दी है. उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तमाम राजनीतिक दलों से नेताओं के अपने दल को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने की होड़ लग गई है. अपनी पार्टियां छोड़कर रातोंरात बीजेपी में शामिल हो रहे इन नेताओं को भी शायद लग रहा है कि बीजेपी के अश्वमेध घोड़े पर सवार होकर ही चुनावी वैतरणी पार कर सकेंगे. अभी तो लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भी नहीं हुआ है, सूत्रों की माने तो तमाम पार्टियों में ऐसे नेताओं की बड़ी संख्या है जो चुनावी आचार संहिता का इंतजार कर रहे हैं ताकि उसके बाद बीजेपी का दामन थाम सकें.

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद से बीजेपी का जोश हाई है. मध्य प्रदेश में बीजेपी ने जोरदार वापसी की, तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान कांग्रेस से छीन लिए. अब लोकसभा के लिए बीजेपी ने खुद के लिए 370 सीटों और अपने एनडीए गठबंधन के लिए चार सौ पार का लक्ष्य रखा है. पार्टी इस बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए जोरदार तरीके से मेहनत भी कर रही है. बीजेपी की जमीनी मेहनत तो है ही, दूसरे दलों के अनेक बड़े नेताओं ने भी हवा का रुख भांपते हुए बीजेपी की ओर  ताकना शुरू कर दिया है. मंगलवार को हुए राज्यसभा चुनाव ने उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी को जोरदार झटका दिया और उसके सात विधायकों के बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने की खबर है. कुछ ऐसा ही झटका कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में झेलना पड़ा, जहां उसके छह और तीन निर्दलिय विधायकों के बीजेपी के पक्ष में वोट डाले. इन तीन निर्दलियों को कांग्रेस अपने पक्ष में मानकर चल रही थी.

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केरल में  BJP को मिला मजबूत साथी
ये तो हुई राज्यसभा चुनाव के बीच मची भगदड़ की बात, लेकिन पिछले कुछ दिनों की बात करें, तो कोई भी पार्टी इससे अछूती नजर नहीं आ रही है. सबसे पहले बात करते हैं केरल की. केरल के बारे में कहा जाता है कि बीजेपी का वहां कोई बड़ा जनाधार नहीं है. लेकिन उसके बावजूद बीजेपी लगातार वहां अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है. जनवरी में बिहार में बड़ा खेला हुआ, जब सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस से नाता तोड़कर दोबारा से बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया. एक समय नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन के अगुआ के रूप में दिखाई दे रहे थे. लेकिन शायद उन्हें भविष्य का आभास हो गया था और उन्होंने बीजेपी की शरण में आना ही बेहतर समझा. इसके बाद 31 जनवरी को केरल में सात बार के विधायक रह चुके बड़े नेता पी.सी. जॉर्ज ने ना केवल बीजेपी का दामन थामा, बल्कि अपनी पार्टी केरल जनपक्षम (सेक्युलर) का बीजेपी में विलय भी कर लिया. सात फरवरी को मध्यप्रदेश के जबलपुर से कांग्रेस महापौर जगत बहादुर अन्नू ने बीजेपी का दामन थाम लिया.

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अशोक चव्‍हाण ने कांग्रेस को दिया झटका
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका था. अशोक चव्हाण सूबे में कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार थे. ना सिर्फ मुख्यमंत्री, बल्कि सांसद, विधायक तमाम पदों पर रहे. 19 फरवरी को कांग्रेस के लिए राजस्थान से झटका आया. जब उसके सिटिंग विधायक और सूबे के बड़े नेता महेंद्र जीत सिंह मालवीय ने बीजेपी का दामन थाम लिया. इसी तरह 27 फरवरी को कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद और छोटा उदयपुर से पांच बार सांसद रहे नाराण राठवा ने भी अपने बेटे के साथ बीजेपी संग जाने का फैसला कर लिया.

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तमिलनाडु में मजबूत हो रही बीजेपी
पिछले हफ्ते तमिलनाडु में कांग्रेस की सिटिंग विधायक विजयाधरानी दिल्ली बीजेपी मुख्यालय पहुंची और पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली. विजयाधरानी तीन बार की कांग्रेस विधायक हैं और पहली बार उन्होंने राजनीतिक दल बदला है. तमिलनाडु भी उन राज्यों में शुमार है, जहां बीजेपी मजबूत होने की भरसक कोशिश कर रही है.  बीजेपी में शामिल होने की ये यात्रा उत्तर पूर्व में भी जारी है. अरुणाचल प्रदेश  में दो दिन पहले कांग्रेस के दो और एनपीपी के दो विधायकों ने बीजेपी में शामिल होने का फैसला कर लिया. कांग्रेस के दो विधायकों में निनोंग एरिंग भी शामिल थे, जो सांसद भी रह चुके हैं और केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री भी थे. मंगलवार को ही बिहार में भी विपक्षी गठबंधन को झटका सहन करना पड़ा, जब आरजेडी के एक और कांग्रेस के दो विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया.

Tags: 2024 Lok Sabha Elections, Pm narendra modi, Political news

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