आजकल देश मे लेटरल एंट्री के जरिये मोदी सरकार द्वारा सर्वोच्च पदों पर की जा रही भर्ती पर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है , दरअसल शनिवार को यूपीएससी के जरिये एक विज्ञापन निकाला गया जिसमें जॉइंट सेक्रेट्री से लेकर डारेक्टर पद तक के लिए आवेदन मांगे गए थे.इसमे UPSC के जरिए नौकरशाही में लेटरल एंट्री की जानी थी ,इस विज्ञापन के बाद विपक्ष ने एक बार फिर मोदी सरकार के इस फैसले को आरक्षण विरोधी बताते हुए बवाल खड़ा कर दिया , वही मोदी सरकार के मंत्री अनिल वैष्णव ने विपक्ष को करारा जवाब देते हुए कोंग्रेस राज में हुई लेटरल एंट्री की लिस्ट जारी कर दी म
जिस लेटरल एंट्री पर इतना विवाद छिड़ा हुआ है, आखिर वह है क्या, पहले तो ये समझिए. बता दें कि लेटरल एंट्री के जरिए प्राइवेट क्षेत्र के एक्सपर्ट्स की केंद्र सरकार के मंत्रालयों में सीधी भर्ती की जाती है. ये भर्तियां जॉइंट सेक्रेट्री, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेट्री के पदों पर की जाती हैं. निजी क्षेत्र में काम करने वाले 15 साल के एक्सपीरिएंस वालों की भर्ती अफसरशाही में लेटरल एंट्री के जरिए की जाती है. इसमे शामिल होने वालों की उम्र 45 साल होनी चाहिए. इसके पास किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी और इंस्टीट्यूट से कम से कम ग्रैजुएशन की डिग्री होनी चाहिए. लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती करने वालों में शैक्षणिक निकायों और विश्वविद्यालयों में काम करने वाले लोग शामिल नहीं होते हैं.
इन वेकेंसी को कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर लेटरल एंट्री के जरिए भरा जाना है. लेकिन इस पर बवाल मच गया है. पक्ष और विपक्ष इस मामले पर आमने-सामने आ गए हैं. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और अखिलेश यादव समेत तमाम नेता इसे लेकर केंद्र पर निशाना साध रहे हैं. राहुल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कर सरकार SC,ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीनने का काम कर रही है. यहां तक लालू, अखिलेश और मायावती भी राहुल के सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं. दोनों ने केंद्र के इस फैसले को बीजेपी की साजिश और संविधान का उल्लंघन करार दिया है. वहीं केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव ने कांग्रेस पर भ्रामक दावे करने का आरोप लगाया है.
विपक्ष के इन आरोपों पर केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस का विरोध पाखंड के अलावा कुछ नहीं है, क्योंकि इसकी अवधारणा यूपीए सरकार के समय ही तैयार हुई थी. उन्होंने कहा कि दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) यूपीए सरकार के दौरान साल 2005 में गठित किया गया था. जिसके अध्यक्ष वीरप्पा मोइली थे. आयोग ने खास नॉलेज की जरूरत वाले पदों में रिक्तियों को भरने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की सिफारिश की थी.अश्वनी वैष्णव ने कहा कि लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्तियां 1970 से कांग्रेस सरकारों के दौरान होती रही हैं. ऐसी पहलों के उदाहरण में उन्होंने मनमोहन सिंह, मोटेक सिंह आहलूवालिया का नाम लिया.
वैष्णव ने बताया कि साल 1971 में मनमोहन सिंह लेटरल एंट्री के जरिए ही विदेश व्यापार मंत्रालय में सलाहकार के रूप में सरकार में शामिल हुए थे. वित्त मंत्री और फिर देश के प्रधानमंत्री बने.
रघुराम राजन ने भी लेटरल एंट्री के जरिए ही मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में काम किया. बाद में 2013 से 2016 तक वह RBI के गवर्नर रहे.
बिमल जालन ने भी लेटरल एंट्री के जरिए कांग्रेस सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर काम किया. फिर वह RBI के गवर्नर बने.
सैम पित्रौदा, कौशिक बसु, वी कृष्णमूर्ति, अरविंद विरमानी भी लेटरल एंट्री के जरिए सरकार में शामिल हो चुके हैं.
अश्वनी वैष्णव ने ये भी साफ किया कि एनडीए सरकार ने लेटरल एंट्री का सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी तरीका बनाया है. UPSC के जरिए पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से भर्ती की जाएगी. इस सुधार से शासन में सुधार होगा इस पूरे घटनाक्रम के बाद लेटरल एंट्री से होने वाली भर्ती के विज्ञापन पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी है। इस संबंध में कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC के चेयरमैन को पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में कहा कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाई गई है।
कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC के अध्यक्ष को पत्र लिखा है। उन्होंने चिट्ठी में कहा कि, “2014 से पहले लेटरल एंट्री के जरिए हुई भर्तियां एड-हॉक आधारित थी। इसमें कई बार पक्षपात के मामले भी सामने आए। हमारी सरकार की कोशिश इस प्रक्रिया को संस्थागत रूप से बेहतर, पारदर्शी और खुला बनाने की है। प्रधानमंत्री का दृढ़ विश्वास है कि लेटरल एंट्री की प्रक्रिया को हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के साथ जोड़कर रखा जाना चाहिए, खासतौर पर आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में।” कुल मिलाकर फिलहाल मोदी सरकार ने विपक्ष के हाथ से यह मामला छीन लिया है ।