नए साल में अलवर जिले से लगते खैरथल और कोटपुतली से दुखभरी खबरे सामने आई जहां एक तीन साल और एक सात साल की बच्ची की अलग अलग दो घटनाओं में उनकी मौत हो गई सबसे दुखद बात है इसमें प्राकृतिक आपदा या सड़क हादसे में मौत नहीं हुई न ही किसी बीमारी के चलते उनकी मौत हुई , दो मासूम बच्चियों की बलि सिस्टम की लापरवाही से हुई , जो बचपन के दिनों में खेल खेल में ही काल का ग्रास बन गई , इसमें एक घटना कोटपुतली बहरोड़ जिले की है जहां कीरतपुर गांव में खुले पड़े एक बोरवेल में 3 साल की चेतना खेलते खेलते उस 700 फीट नीचे बोरवेल में जा गिरी , दस दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद बमुश्किल चेतना को निकाला गया लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी , इस घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया , अभी इस घटना को भूल भी नहीं पाए कि खैरथल तिजारा जिले के किरवारी गांव में एक सात साल की मासूम इकराना को गांव में पांच कुत्तों ने नोच नोच कर खा डाला , रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना के बाद परिवार का रो रो कर बुरा हाल है , अपने मां बाप की इकलौती बेटी जो खेतो की तरफ अपनी सहेलियों के साथ बेर खाने गई थी , रास्ते में सूखी लकड़ियां बिनने लगी थी वहा बैठे पांच छ कुत्तों के झुंड ने उस पर हमला कर दिया और उसे घसीट कर खेतो में ले गए , यह सब देखकर अन्य बच्चियों भाग निकली और खेतो में काम कर रहे अन्य लोगों को दी लेकिन जबतक वह आते तब तक कुत्तों ने उसे 40 से पचास जगह नोच डाला , गंभीर घायल बच्ची को लेकर खैरथल भागे लेकिन रेलवे का फाटक बंद होने से काफी समय खराब हुआ , जब तक अस्पताल पहुंचे तब तक बच्ची ने दम तोड़ दिया था ।
सवाल है दो बच्चियों की इस अकाल मौत का जिम्मेदार कौन है कोटपुतली में रेस्क्यू में दस दिन क्यों लगे , खुले पड़े बोरिंग बंद क्यों नहीं होते , आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती रहती है सवाल है सरकार और शासन घटना के बाद ही क्यों जागता है ।
खैरथल में कुत्तों के हमले से सात साल की मासूम ने जान गवा दी जबकि कुत्तों का इस क्षेत्र में यह पहला हमला नहीं है पहले भी कुत्तों ने एक गाय पर हमला किया , एक महिला को घायल किया लेकिन प्रशासनिक स्तर पर ऐसे आदमखोर कुत्तों को पकड़ कर जंगल में क्यों नहीं छोड़ दिया जाता , दोनो बच्चियों की मौत सिस्टम पर कई सवाल खड़े कर रही लेकिन जिम्मेदार शायद ही कोई जवाब दे पाए ।