आज क्राइम स्टोरी में बात 26 ग्यारह को हुए हमले की , 17 साल पहले हुए इस हमले में भले ही पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब को फांसी की सजा मिल गई हो लेकिन मुंबई में हुए इस हमले का मुख्य साजिश कर्ता तहव्वुर राणा था जिसे अब अमेरिका से प्रत्यपर्ण की मंजूरी मिली है , एक बार नजर डालेंगे 26 ग्यारह के उस दिल दहला देने वाली घटना को जिसमें करीब 166 लोग मारे गए थे ।
26 नवंबर 2008 को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में समुद्र के रास्ते दाखिल हुए दस आतंकियों ने मुंबई में सिलसिले वार हमला करते हुए ताज होटल को निशाना बनाया था , पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने 60 घंटों तक पूरे देश को सदमे में डाले रखा. उन्होंने कई अहम ठिकानों पर हमले किए, जिसमें 166 लोगों की हत्या हुई. बाद में NSG कमांडोज को बुलाना पड़ा. पुलिस और कमांडोज की कार्रवाई में 9 आतंकी मारे गए और एक जिंदा पकड़ा गया, जिसका नाम अजमल आमिर कसाब ।
अजमल कसाब को नवंबर 2012 में पुणे की यरवदा जेल में फांसी दे दी गई… लेकिन इस पूरे मामले की तहकीकात में सामने आया इस पूरे हमले का मास्टर माइंड तहव्वुर राणा था जो इस हमले का मुख्य साजिशकर्ता था , जांच में यह भी पता चला राणा के तार पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर ए तोयबा से जुड़े है , राणा को हमले की साजिश के बारे में पहले से ही पता था. सारी प्लानिंग उसकी नज़रों के सामने हुई थी और उसने टारगेट की रेकी भी की थी. वह पाकिस्तान की सेना में डॉक्टर के तौर पर भी काम कर चुका है. तहव्वुर राणा मुंबई हमलों के सबसे संगीन किरदार का लंगोटिया दोस्त भी था, और उसी दोस्त ने उसका खेल बिगाड़ दिया.
इस वारदात में एक और भी किरदार है पहले उसके बारे में भी जान लीजिए ,9 अक्टूबर, 2009 को शिकागो के ओ’हेयर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर, एक व्यक्ति इस्लामाबाद जाने वाली उड़ान पकड़ने की जल्दी में था। वह पहले भी कई बार पाकिस्तान जा चुका था, लेकिन इस बार उसके चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था. उसका डर सच हो गया जब एफबीआई एजेंटों ने उसे बोर्डिंग से पहले ही गिरफ्तार कर लिया. एफबीआई उस पर बहुत पहले से नजर रख रही थी, क्योंकि उसके आतंकी समूहों से संबंध थे.गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की एक पुरानी आदत थी: जब भी वह किसी मुश्किल परिस्थिति में फंसता था, तो वह तोते की तरह अपनी जुबान खोल देता था और सरकारी गवाह बनकर अपनी सजा कम करवा लेता था. उसका नाम डेविड कोलमैन हेडली था. हेडली ने एफबीआई के सामने भी अपनी पुरानी तरकीब अपनाई. उसने मुंबई सहित कई आतंकी हमलों में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, लश्कर-ए-तैयबा और अलकायदा के अंदर की खबरें बताईं. लेकिन एफबीआई इससे संतुष्ट नहीं थी. उस पर प्रत्यर्पण और मौत की सजा का खतरा मंडरा रहा था. इससे बचने के लिए वह बोला, “मैं आपको नाम बताता हूं. मुझे बचा लो. मैं गवाही दूंगा.”
इस दौरान जिस व्यक्ति का उसने नाम लिया वह उसके बचपन का सबसे खास दोस्त था: जिसका नाम था तहव्वुर हुसैन राणा. दोनों का परिवार प्रभावशाली था और उन्होंने पाकिस्तानी पंजाब के एक ही मिलिट्री कॉलेज से पढ़ाई की थी. उनके बीच दोस्ती हुई और कॉलेज की दोस्ती आगे भी कायम रही. जब हेडली हेरोइन के साथ पकड़ा गया, तो राणा ने अपना घर गिरवी रखकर उसे जमानत दिलवाई थी। लेकिन हेडली ने अपनी जान बचाने के लिए अपने दोस्त की कुर्बानी देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। आगे चलकर वह राणा के केस का सबसे बड़ा गवाह बना।
राणा पर तीन मुख्य आरोपों में मुकदमा चला जिसमें एक मुंबई हमले का मामला भी शामिल था लेकिन जून 2011 में शिकागो की एक अदालत ने राणा को मुंबई हमले के आरोप में बरी कर दिया, लेकिन पहले और दूसरे आरोप में उसे दोषी करार दिया गया. 2013 में उसे 14 साल की सजा सुनाई गई. 2020 में वह कोविड पॉजिटिव हो गया, जिसके बाद उसे जेल से रिहा कर दिया गया…
भारत इससे खुश नहीं था. एनआईए ने कहा कि उसके पास राणा के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं और उसे भारत भेजा जाना चाहिए, जहां उसे अपने हिसाब से सजा दी जाएगी.
रिहाई के तुरंत बाद भारत सरकार ने राणा के प्रत्यर्पण की याचिका लगाई. भारत की याचिका के बाद राणा को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसके प्रत्यर्पण पर अदालत का फैसला आया. कोर्ट ने कहा कि राणा भारत में हत्या, आतंकी साजिश रचने और आतंकी गतिविधियां करने का आरोपी है. यह दोनों देशों के बीच हुई प्रत्यर्पण संधि में फिट बैठता है, इसलिए उसे भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है. आखिरकार
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि उनके प्रशासन ने 26/11 मुंबई आतंकवादी हमलों में अपनी भूमिका के लिए भारतीय जांच एजेंसियों द्वारा वांछित तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है, ताकि “भारत में न्याय का सामना किया जा सके”
आज इस क्राइम स्टोरी में इतना ही दीजिए इजाजत