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आपने पढ़ा है ‘पुलिसनामा’, जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं! पुलिस की कार्यप्रणाली की पोल खोलती कहानी

कहते हैं कि पुलिस की मार के आगे तो भूत भी नाचते हैं. पुलिस की लाठी में इतनी ताकत होती है कि रस्सी का साँप और साँप की रस्सी बना देती है. लेकिन क्या आपने कभी ऐसा पुलिसनामा पढ़ा है जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं? अगर नहीं तो फटाफट इस पढ़ लें. बेहद रोचक अंदाज में लिखा गया पुलिसनामा पुलिस की कार्यप्रणाली पर रोशनी डालता है.

जैगम मुर्तजा की बेहद चर्चित किताब ‘पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ का दूसरे संस्करण भी बाजार में आ चुका है. इस पुलिसनामा की लेखन शैली ऐसी है कि यह पुलिस के खिलाफ भड़ास निकालती पत्रकार की रिपोर्ट नहीं लगती बल्कि घटनाओं के माध्यम से बताती है कि हमारे पुलिसिया तंत्र में कितने झोल हैं. सीधे तौर पर यह किताब बताती है कि देश में पुलिस रिफार्म की ज़रुरत क्यों है.

दरअसल पुलिस में काम करने वाले लोग आम इंसान ही हैं. उनसे भी उसी प्रकार गलतियां होती हैं जैसे कि आम इंसान करता है. कई बार जानबूझकर या फिर अंजाने में वो ऐसी हरकत कर बैठते हैं जिससे तमाम उंगलियां उनकी तरफ उठने लगती हैं. लेकिन यह समस्या का हल नहीं है. जरुरत तंत्र में सुधार की है.

आपको बता दें कि राजपाल एंड संस से प्रकाशित ‘पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ पहली बार पिछले साल पुस्तक मेला से पहले ही छपकर आया था. लेकिन यह किताब इतनी चर्चित हुई कि कुछ ही दिनों में इसकी सारी प्रतियां बिक गईं. किताब के रिप्रिंट के बाद प्रकाशक अब इसका दूसरा संस्करण बाजार में लाए हैं. प्रकाशक मीरा जौहरी को उम्मीद है कि जिस तरह किताब लोगों के बीच लोकप्रिय हुई है उसके हिसाब से इसका अगला संस्करण भी जल्द लाना पड़ेगा.

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दरअसल, पुस्तक के लेखक जैगम मुर्तजा का ताल्लुक उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले से है. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से तालीम पूरी की और पत्रकारिता के पेशे में आ गए. अपने लंबे पत्रकारीय करियरम में उन्होंने ईटीवी, हिंदुस्तान टाइम्स, राज्यसभा टीवी (संसद टीवी) और एशियाविल जैसे संस्थानों के साथ काम किया. इसके अलावा उन्होंने बतौर गेस्ट फैकल्टी दिल्ली विश्वविद्यालय और आईआईएमसी में पढ़ाया भी है. अपने करियर का एक बड़ा हिस्सा मुर्तजा ने क्राइम रिपोर्टिंग करते हुए गुजारा है.

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नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला में ‘पुलिसनामा’ के दूसरे संस्करण का लोकार्पण किया गया.

जैगम मुर्तजा के तर्जबे के निचोड़ है उनकी पुस्तक ‘पुलिसनामा- जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’. यह सच्ची घटनाओं पर आधारित किस्सों की किताब है. इसमें कुल 20 कहानियां हैं. लेखक इन घटनाओं का बतौर रिपोर्टर या तो खुद चश्मदीद है या फिर यह घटनाएं डेस्क पर काम करते हुए साथी पत्रकारों के माध्यम से उस तक पहुंची हैं. पुलिसनामा की भूमिका एसआर दारापुरी ने लिखी है जो खुद यूपी पुलिस में आईजी रहे हैं. किताब का संपादन मशहूर लेखक अशोक कुमार पांडेय ने किया है.

जैगम मुर्तजा बताते हैं कि पुस्तक की पहली कहानी ‘जहां मुर्दे भी गवाही देते हैं’ है. उन्होंने बताया कि किस तरह मेरठ जिले की पुलिस ने अदालत में एक ऐसे आदमी को गवाह बनाकार पेश कर दिया जो पंद्रह साल पहले मर चुका था. इस तरह ‘पुलिसनामा’ में 20 दिलचस्प घटनाएं हैं. निश्चित ही पढ़ने में आपको बहुत मजा आएगा.

Tags: Books, Crime News, Hindi Literature, Literature, Meerut crime, UP police, Uttar pradesh news

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