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अनूपगढ़ (राजस्थान) पाकिस्तान की सरहद पर लगता है प्रेमी जोड़ों का मेला

अनूपगढ़(राजस्थान)

पाकिस्तान की सरहद पर लगता है प्रेमी जोड़ों का मेला

लैला-मजनू की मजार पर हर साल भरता है मेला

भारत -पाक सरहद पर हर साल आते हैं सैकड़ो प्रेमी जोड़े

यह खबर राजस्थान के अनूपगढ से है यहां भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बिंजौर गांव में स्थित एक मजार पर सैकड़ों युगल अपने प्रेम में अमर होने की दुआ मांगते देखे जा सकते हैं। यहां हर साल जून के महीने में एक मेला लगता है जिसमें आने वालों को पूरा यकीन है कि उनकी फरियाद जरूर कुबूल होगी।

लैला-मजनू की दास्तान पीढ़ियों से सुनी और सुनाई जा रही है। कहा जाता है कि लैला और मजनू एक दूजे से बेपनाह मोहब्बत करते थे लेकिन उन्हें जबरन जुदा कर दिया गया था। यहां के लोग इस मजार को लैला-मजनू की मजार कहते हैं। हर साल जून के महीने में यहां सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचते हैं क्योंकि यहां इस दौरान मेला लगता है।

यह मजार अनूपगढ़ जिले में पाकिस्तान सीमा से यह महज पांच किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल भी यहां सैकड़ों की संख्या में विवाहित और प्रेमी जोड़े यहां पहुंचे। यद्यपि इतिहासकार लैला-मजनू के अस्तित्व से इनकार करते हैं। वे इन दोनों को काल्पनिक चरित्र करार देते हैं। परंतु इस मजार पर आने वालों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो बस फरियाद लिए यहां चले आते हैं। स्थानीय निवासी कहते हैं कि हर साल यहां सकड़ों जोड़े लैला-मजनू का अशीर्वाद लेने आते हैं, लेकिन पिछले 10-15 वर्षो में यहां आने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। यहां आने वाले सभी मजहबों के लोग होते हैं। लोगो के अनुसार हिंदू और मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख एवं ईसाई भी इस मेले में आते हैं। तो हर साल जून महीने में लैला मजनू की याद में लगने वाले मेले में देशभर से हजारों की संख्या में उनके मुरीद पहुंच कर प्यार भरे जीवन की मन्नत मांगते हैं , लेकिन आम दिनों में भी प्यार में असफल दुखी लोगों का तांता मजार पर लगा रहता है. लैला मजनू की मजार पर नवविवाहितों के साथ ही प्यार में धोखा खाए और विवाह का बेस्रबी से इंतजार कर रहे युवक-युवतियां पहुंचकर अपने अमर प्यार के लिए मन्नत मांगते हैं.

एक और धारणा के अनुसार लैला मजनू की मजार लगभग 400 साल पुरानी है मेला कमेटी के अध्यक्ष व मुख्य सेवादार बाबा दलीप सिह ने मजार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वे सन 1962 से इस बिन्जौर गाँव में रह रहे है उस वक्त इस पूरे क्षेत्र में जंगल था और इस क्षेत्र में घग्घर नदी के बाढ आने पर पूरे क्षेत्र में भारी मात्रा मे पानी हो जाने के बावजूद मजार मे पानी नही जाता था सेवादार ने बताया कि सन 1965 में उन्होने यह मंजर अपनी आखो से देखा । मुख्य सेवादार के कहने अनुसार भारत पाक सीमा पर तारबंदी से पुर्व पाक क्षेत्र के मुस्लिम लोग भी लैला मजनू की इस मजार पर मन्नत मांगने आया करते थे सेवादार ने बताया कि 1972 में इस मजार पर एक चम्तकार हुआ उसके बाद इस मजार की मान्यता बढती चली गई और हर साल भारी मेला लगने लगा।

मेले के दौरान मेला कमेटी द्वारा कुश्ती व कब्बडी का आयोजन भी करवाया जाता है जिसमे दूर दराज के पहलवान आकर अपना दम खम दिखाते है विजेता पहलवान को मेला कमेटी द्वारा सम्मानित किया जाता है। मनोरंजन के उदेष्य से मेले में पंजाब के कलाकारो द्वारा पंजाबी अखाड़े का आयोजन भी किया जाता है

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